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रहस्य-रोमांच >> दमन चक्र

दमन चक्र

सुरेन्द्र मोहन पाठक

प्रकाशक : हार्परकॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :248
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 9390
आईएसबीएन :9789351776253

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

शुक्रवार : पांच मई : दुबई

छोटा अंजुम ने एक बन्द दरवाजे पर हौले से दस्तक दी और फिर ‘भाई’ की डैन में कदम रखा।

‘भाई’ को उसने एक विशाल आफिस टेबल के पीछे राज सिंहासन जैसी एग्जीक्यूटिव चेयर पर पसरे पाया। हमेशा की तरह वो नख से शिख तक सजा धजा था और कृत्रिम प्रकाश से आलोकित उस वातानुकूलित कमरे में भी आंखों पर काले शीशों वाला कीमती चश्मा लगाये था। बो बड़े इत्मीनान से सिगार के कश लगा रहा था और करीब पड़े टेलीविजन पर इण्डिया और पाकिस्तान का क्रिकेट मैच देख रहा था।

अपने दायें हाथ के तीर पर जाने जाने वाले छोटा अंजुम को देखकर उसने रिमोट से टी.वी. की साउन्ड बन्द कर दी और प्रश्रसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा।

छोटा अंजुम करीब पहुंचा और अदब से बोला - ‘‘आपका मोबाइल बन्द जान पड़ता है।’’
‘भाई’ ने हड़बड़ा कर अपने कोट को उस जेब में हाथ डाला जिसमें उसका मोबाइल फोन मौजूद था।
मोबाइल को उसने सच में ही ऑफ पाया।
‘‘पता नहीं कैसे बन्द हो गया !’’ - वो उसे फिर से ऑन करता बड़बड़ाया।
‘‘हो जाता है।’’ - छोटा अंजुम बोला।
‘‘बात क्या है ? - ‘भाई’ ने उत्सुक भाव से पूछा।

‘‘सिंगापुर से फोन आया था। फोन करने वाले ने ही बताया था कि आपका मोबाइल ऑफ था। आपको दूसरे, डैस्क फोन पर, लगाई गयी काल मेरे पास बजती है इसलिए...’’
‘‘फोन किस का था ?’’ - ‘भाई’ ने उतावले भाव से उसकी बात काटी।
‘‘रॉस ऑरनॉल्डो का।’’
वो नाम सुनते ही ‘भाई’ ने मुंह से सिगार निकाल कर ऐश ट्रे पर टिका दिया।

‘‘फौरन प्लेन से मुम्बई पहुंचिये और मोबाइल पर अगला आदेश मिलने का इन्तजार कीजिये।’’
‘‘बट दैट इज आउट आफ क्वेश्चन।’’
‘‘वजह ?’’
‘‘वजह तुम लोगों को मालूम है। नहीं मालूम है तो मालूम होनी चाहिये।’’
‘‘वजह ?’’
‘‘वहां की सरकार ने मेरी गिरफ्तारी का वारन्ट जारी किया हुआ है। मैं मुम्बई जा कर अपनी हालत आ बैल मुझे मार जैसी नहीं कर सकता।’’

‘‘आप इण्डिया अक्सर जाते हैं।’’
‘‘चोरी से। समुद्र के रास्ते। नामालूम जगहों पर। चन्द घन्टों के लिए। मरता क्या न करता जैसे हालात में।’’
‘‘मौजूदा हालात को भी मरता क्या न करता जैसे हालात समझ लीजिये।’’
‘‘लेकिन प्लेन से ? वो भी सीधा मुम्बई जा कर उत्तरूं ? ये नहीं हो सकता।’’
‘‘आप अपने तरीके से मुम्बई पहुंच सकते हैं ?’’
‘‘पहुंच सकता हूं। लेकिन फौरन नहीं। मेरे तरीके से वहां पहुंचना कई दिन का प्रोजेक्ट बन सकता है।’’
‘‘होल्ड कीजिये।’’
‘‘ठीक है।’’

‘भाई’ ने स्पीकर का स्विच आफ किया और भुनभुनाया - ‘‘कमीना झूठ बोलता जान पड़ता है कि रीकियो फिगुएरा वहां उसके करीब नहीं है। मुझे होल्ड करा के जरूर उसी से मशवरा कर रहा होगा।’’

छोटा अंजुम ने बड़ी संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया और फिर बोला - ‘‘भाई’, हम कुछ ज्यादा ही खौफजदा नहीं रहते अपने इन गैरमुल्की आकाओं से ?’’

‘‘बात तो ऐसी ही है, मेरे अजीज’’ - ‘भाई’ बोला - ‘‘लेकिन क्योंकि हेरोइन और आर्म्स स्मगलिंग के मामले में इन लोगों की सरपरस्ती हमने खुद कुबूल की है इसलिये हमारा एतराज करने का मुंह नहीं बनता।’’

‘‘ठीक।’’

तभी टेलीफोन पर लाल एल.ई.डी. जलने बुझने लगा।
‘भाई’ ने तत्काल स्पीकर का स्विच ऑन किया।
‘‘मीटिंग नेपाल में होगी।’’ - ऑरनाल्डो को आवाज आयी - ‘‘कोई एतराज ?’’
‘‘कोई एतराज नहीं।’’ - ‘भाई’ बोला - ‘‘लेकिन अगर मैं सिंगापुर ही...’’

‘‘गुड। कल आपका लंच काठमाण्डू के होटल सोल्टी ओबराय में मिस्टर रीकियो फिगुएरा के साथ होगा।’’
‘‘लेकिन अगर...’’
लाइन कट गयी।
‘भाई’ के चेहरे पर वितृष्णा के भाव आये। उसने स्पीकर का स्विच ऑफ करके फोन अपने से परे धकेल दिया और ऐश ट्रे पर से अपना सिगार उठा लिया।

छोटा अंजुम ने सशंक भाव से उसकी तरफ देखा।
‘‘क्या देखता है ?’’ - ‘‘जा के टिकट का इन्तजाम कर।’’
सहमति में सिर हिलाता छोटा अंजुम तत्काल उठ खड़ा हुआ।

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